कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना।
बिखरे बाल बनाना, कपड़ों के बीच बिखरा दुपट्टा जमाना और चादरों की सिलवट ठीक करना अच्छा लगता है ना!
तो कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना।
घर में बुजुर्गों की तालीमों के साथ,
मां की उस मीठी डांट के साथ,
घर भर में दौड़ते बच्चे की बिखरी खिलखिलाहट भी तो अच्छी लगती है ना!
कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना।
उस पतीले में चढ़े दूध में बिखरी चाय की पत्ती भी तो अच्छी लगती है ना!
सच पूछो तो कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना।
मई की गर्मी की आंच तो नहीं,
पैरों में तपतपाती धूप की ताप तो नहीं,
मगर भोर के सूरज की क्षितिज में बिखरी लालिमा,
ठंडक देती घास पर बिखरी ओस की बूंदें तो अच्छी लगती है ना!
कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना।
अमावस की रात, काले बादल , फसलों पर पड़ते ओले, आंखों में बेतरतीबी से बिखरा काजल तो नहीं,
पर पूनम की बिखरी चांदनी, बारिश की बूंदों से मिट्टी पर बिखरी सोंधी खुशबू और आंखों में बिखरी मीठी यादें तो अच्छी लगती है ना!
कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है।
जब बगीचे में जाती हूं, पतझड़ के सूखे पत्ते नहीं भाते,
उन गुलाब के पौधों में लगे कांटे तो नहीं भाते,
लेकिन उन फूलों के आसपास बिखरी तितलियां और जमीन पर बिखरी गुलाब की पंखुड़ियां तो अच्छी लगती है ना!
कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना।
दिवाली के दीयों की कतार ही नहीं,
होली में थाल में रखे रंग के भंडार ही नहीं,
धागे में पिरोए मोती की माल ही नहीं,
मगर आंगन में फुलझड़ी की बिखरी चिंगारियां,
बसंत के वो बिखरे केसरिया टेशू ,
और समंदर किनारे रेत में बिखरे वो सीप भी तो अच्छे लगते हैं ना!
कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना।
यूं तो हर सपनों का सच हो जाना भी अच्छा नहीं लगता, पूरे सपनों को आंखों में बसाना भी अच्छा नहीं लगता,
अगर हर सपने सच हो जा जाएं, तो वो सपने ही कहां रह जाएं,
इसलिए आंखों में कुछ बिखरे सपने संजोना भी तो अच्छा लगता है ना!
सच कहूं तो कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना,
कुछ बिखरा भी तो अच्छा लगता है ना।
Han bikhra achcha lagta hai
ReplyDeleteMegha you wrote this
ReplyDeleteBahut aachaa likha hai aapne.
ReplyDeleteYes
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